Wednesday, August 8, 2012

पट्टी नत्तार =तमिल संत की कवितायें




पट्टी नत्तार   =तमिल संत की कवितायें 
भावार्थ.

 नारी के कान   तक   के नेत्र  

स्त्री के कटी प्रदेश,ये हैं ,कलह कारक;

बाधक है  ईश्वर भक्ति के.
पंचेन्द्रिय चोर हैं,कलह्प्रद,दुःख प्रद.

दुखप्रद  जंगल यह देह;
 है जल-मूत्र से भरे संदूक;

वाद-पित-कफ के आवास.

गन्दगी के त्वचा,रक्त संचार का यन्त्र.

दुर्गन्ध का घडा.चार गज की लम्बाई,

नौ-द्वार की  लकड़ी का टुकड़ा.
अस्ति से ढका श्मशान का चबूतरा.
इच्छा   की रस्सी  से चक्कर  काटनेवाला लट्टू,
असाध्य रोगों का घर
.माया का भद्दा रूप;
अन्न  से भरा थैली मरण कोठरी;
हवा में उडनेवाला पतंग
;कर्म फल के अनुसार  यम के 
हाथ की  लकड़ी नर
जवानी में शादी का बंधन का पिंड ;
अंत में शव-सा अचल पिंड;
शव होने के बाद बस्ती में अस्थिर शोक;
हवा के सामने के सूखे  फूल;
सबेरे सूरज के  निकलते ही,
ओझल होनेवाले ओस की बूँद;
आकाश के इन्द्र धनुष.
मेघ गर्जन की छाया.
जल का भ्व्वर ;जल पर के लिखे अक्षर;
जागृति और स्वप्ना के बीच का प्रतीक;
उस  में भी अस्थिरता का माया जाल.
यही है जीवन नर का.माया से भरा संसार.

ऐसे शरीर के रक्षक है ईश्वर;
शिव की स्तुति करते हैं 
पर्वत राज  की पुत्री,
उमाम्हेश्वरी करती  यशो गान
करती  तेरे .
आनंद  नर्तन करके  दास पर ;
करें  कृपा.यही मेरी विनीत प्रार्थना.

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