Tuesday, August 14, 2012

मनुष्य ताज़ा पसंद करता है ;




   मनुष्य  ताज़ा  पसंद करता है ;

   संसार में जीने जीव जन्म लेते हैं अनेक.

    संख्या न मालूम कितनी.

कीड़े मकोड़ों ,सूक्ष्म जंतु हैं

उनमें कितने रोग कारणी.

कितने उनमें रोग हरनी;\

आदमखोर जानवर,

जंगली जानवर;

पालतू जानवर; 

फालतू जानवर;

उनमें भी चतुर;चालाक;विषैला;

मनुष्य है महान;

उसने मिटा दिया;

नामोनिशान;

कितने रंग-बिरंगे

कोमल पक्षी;

किनते तरह के पशु;

न जाने वह अपने बुद्धि बल से;

खुद जीने के लिए;

जड़-मूल नाश करता है;

वनस्पतियों को.

अपने अस्तित्व के लिए;

ईमान  बेचता है;

सत्य को गाढ़ता है;

न्याय का गला घोंटता है.

धन  धन धन

कमाने सौगुना लाभ उठाने,

अपना मत बेचता है;

मतलब की दुनिया बनाता है.

बेमतलब से बेईमानी का जीवन बिताता हैं.


सब को मिटाकर जीने  की  ख़ुशी में,

सांस   ले ने बैठता तो

दम घुटता है;

खाना नहीं पचता है;

कान नहीं सुनता है;

स्वार्थी की बात सुनता कोई नहीं.

काल कवलित हो जाताहै.

उसकी लाश जलाई जाती है.

जीवन में कुछ ही नहीं बचता.

नामी के नाम भी चंद सालों में,

भूल जाता है संसार.

नए विचार,नए सिद्धांत ;

नयी रीति -नीति;नया  उत्साह;

नए भगवान;

मनुष्य ताज़ा-पसंद करता है;

पुरानी कूड़े दान में चले जाते   हैं

No comments: