Wednesday, August 8, 2012

koil thiru akaval- पटटीनत्तार


koil thiru akaval- पटटीनत्तार 

अरे  मन!!  ध्यान  कर!ध्यान कर १

शिव भगवान का ;

गोरे स्वर्णमय देहवाले,

नृत्य -करनेवाले ,

 नाथ शिव का ध्यान कर.

मृगमरीचिका  -सा 

 ,चंचल हवा -सा

अनित्य है जगजीवन.

वास्तव में जीवन मिथ्या है;

शरीर अनश्वर है .

जान-समझ कर ,

उसकी सुरक्षा में मन मत लगा.

जन्म -मरण -पुनर्जन्म
यह  चक्र   है सत्य.
स्थूल-सूक्ष्म सभी मिटे ;
मिटे सब पुनः जन्मे,
मिलन विरह में बदलते;
विरह मिलन में बदलते.

स्मरण विस्मरण हो जाते.
विस्मरण स्मरण हो जाते ;
खाई  वस्तु,  
 मल बन  जाती ;
पहने  वस्त्र  गंदे  होते ;
पसंद  ना  पसंद  हो जाते ;

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