Tuesday, August 14, 2012

रूप और अरूप


रूप और अरूप 

रूप और अरूप
 भगवान की चर्चा
संसार में हो रहा है.


मूर्ती पूजा उपासक
 अपनी मूर्ती को ही भगवान मानते हैं.


ईश्वर की कृपा  प्राप्त  करने
 ईश्वरोपासना  करना 

आवश्यक है.
कम से  कम
 एक दीप या मोम-बत्ती -सा। 


प्रकाश या  ध्वनी की जरूरत
 अरूपोपासक   के लिये भी   हैं.

मेरे दादा करुप्पानासामी की पूजा करते थे.

उन के बाद मेरे काका ,
चाचा किसीने याद नहीं की.
मेरे 
अंतर्मन में एक
 उत्तेजना उठती  रही.
मेरी माँ 
 और बहन- भाई मेरी प्रेरणा से
उपासना करते हैं.


आश्चर्य की बात है कि
मेरे भाई ने मेरे घर से तीन -चार 

किलो-मीटर की दूरी पर
एक घर खरीदा।


मैं उसे देखने के पहले ही
मेरी अंतःप्रेरणा से बताया --


वहां करुप्पानासामी है.
 वह तेरी रक्षा करता है.
मेरे भाई ने 
वहां जाकर देखा तो
 सचमुच  घर  की  थोडी दूर  पर एक 


 करुप्पानासामी की मूर्ती   हैं
.ऐसी कई घटनाएं 


हिंदुवो  के  जीवन में होती  रहती हैं.

 ईश्वर मनुष्य के रूप में आते हैं

कई रूपों में मूर्ती  बनकर
 यत्र - -तत्र -सर्वत्र   विद्यमान है.

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