Friday, August 3, 2012

तिरुक्कुरल में धर्म और चालचलन



तिरुक्कुरल   में   धर्म  और  चालचलन



२.महान साधू संतों की श्रेष्ठता   और बड़प्पन को मापना वैसी ही मूर्खता  है,जैसे कि आज तक मरे हुए लोगों को गिनकर लिखना

३.जग में अच्छे -बुरे हैं.अच्छायियों को जान-समझकर अच्छे   आचरण  से जीने वाले ही महान बनते हैं.

४.ज्ञान को मूलाधार बनाकर संयम से रहनेवाला ही ,श्रेष्ठ  नामक  वृक्ष को  अपने स्वभा  की  बीज से  बोता है.

5.पंचेद्रियों के कारण होनेवाली इच्छाओ  को नियंत्रण में रखकर अपनी इच्छाओं को छोडनेवाला ही देवों के

 राजा  के द्वारा आदरणीय बनता है.
६.
स्वाद,ध्वनि,प्रकाश,बदबू -खुशबू,दुःख   ,आदि  को  एक  ज्ञानी पहले  ही  जान   सकता   है .वह  मार्ग  दर्शक  बनता  है .संसार  उसके  पीछे  चलता  है .

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7.बड़े  लोग  अपूर्व चमत्कार पूर्ण अच्छे कार्य ही करेंगे.दुसरे लोग बेकार काम ही अपनी अज्ञानता से करेंगे.

८. महानों का बड़प्पन  उनके लिखे ग्रंथों  से पता चलेगा.वे  संसार में अमर यश पायेंगे.

९.महानों के कोप अस्थायी है.क्रोध निकलते ही लुप्त हो जाएगा.वे तो  गुण के खान होते है.वह भी सहज है.

१०.ब्राह्मण वही है,जो सब से प्यार करते है.वह सब के सेवक बनता है.

धर्म  कर.
१.धर्म से बढ़कर बड़ी बात संसार में नहीं है.धर्म हमें नाम देता है;धन -दौलत देता है.धर्म से बढकर भला करनवाला और कुछ भी नहीं है.

२.धर्म मार्ग पर चलें तो भलाई होगी.यश मिलेगा.धर्म-मार्ग भूलने पर बुराई होगी.दुःख होगा.

३.शुभ कार्यों को धर्म मार्ग पर तुरत करना चाहिए.देरी करने में भला नहीं.

४.एक व्यक्ति का मन बेक़सूर होना चाहिए.वही धर्म है.अपवित्र मन से जो भी काम हो,वह अधर्म है.

५.ईर्ष्या ,लोभ,क्रोध,कठोर शब्द आदि चारों  गुण धर्म मार्ग की बाधाएँ
   हैं.इन अवगुणों को छोड़ने से ही धर्म मार्ग पर चल सकते हैं 
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६.जो भी काम हो,उसे तुरंत करना चाहिए.तभी भलाई होगी.स्थगित करने में भला नहीं होगा.

७.धर्म मार्ग पर चलनेवाले सुखी रहेंगे.अधर्म  मार्ग का फल दुःख और अपमान ही है.पालकी ढोनेवाला भी आदमी है.उसमें बैठकर आराम से जानेवाला भी आदमी है.यह तो धर्म-अधर्म का फल है.

८.धर्म मार्ग पर जो चलता है,उसके धर्म कार्य ही उसको सद-कर्म के मार्ग दर्शक होंगे.उसके मार्ग की रुकावटें खुद ही मिट जायेंगी.

९.धर्म पथ पर धर्म करने में ही शाश्वत सुख मिलेगा.नहीं तो दुःख ही भोगना पडेगा.

१०.धर्म मार्ग पर जाने पर मनुष्य को नाम और दाम मिलेंगे.धर्म को भूलने पर बदनाम ही होगा..

1.अनुशासन  और  चरित्र बल के आधार पर जो महात्मा बने हैं,उनके शील पर लिखना ही ग्रंथों का फ़र्ज़ है.

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