Tuesday, August 7, 2012

तमिलनाडु


तमिलनाडु  में ही हिंदी विरोध है।

बाकी प्रान्तों में हिंदी जाननेवाले  हैं ।

तमिलनाडु में प्रत्यक्ष मंदिरों में लिखते है--

नहीं-नहीं -भगवान नहीं।

लेकिन तमिलनाडु में राजनैतिक दलों के विरोध होने पर भी हिंदी सीखनेवाले और बोलनेवाले ज्यादा हैं।

भक्तों की संख्या और   मंदिरों    की आमदनी ज्यादा हैं।

नए-नए मंदिर और प्राचीन मंदिरों  को  गिनना मुश्किल है।


आज  फिर हिंदी को लेकर राजनीति चलाना चाहते हैं।

कारण मिल गया  केंद्रीय विद्यालय की किताब में कार्टून।

कार्टून  का  सचमुच   अर्थ  तमिलनाडु के छात्र की शक्ति के सामने केंद्र सरकार को झुकना पडा और

सम्विधान में लिखना  पड़ा कि  जबरदस्त  हिंदी  राजभाषा नहीं बनेगी।

तमिलनाडु में 1967 में द्रमुख सरकार शासन पर बैठने के बाद ही अंग्रेजी स्कूलों  की संख्या बढी .

कोई भी एम्।एल।ये  या एम्।पि  अपने बेटे  या बेटी को तमिल माध्यम की पाठशाला में भर्ती  नहीं करते।

वे मंदिर जाते हैं।

अंग्रेजी और हिंदी पढ़ते हैं।

महाराष्ट्र में 1966-70 में ही कचहरी में मराठी में ही पैसला  दी गयी।

सभी प्रान्तों  की सरकार को अपनी भाषा के विकास का पूर्ण अधिकार है।

शिक्षा  तो प्रांतीय सरकार के हाथ में है।

 राजनैतिक नेता आज कल परोक्ष रूप में सी।बी।एस.ई स्कूल खोल रहे हैं।


आम जनता जागेगी तो हिंदी विरोध का दाल नहीं गलेगा।

ईश्वरीय  शक्ति जगाएगी।

   तमिल  कवि   सम्राट  कन्नादासन तमिल कवि  ने एक कविता में लिखा है--

''हे हिंदी मोर !नाच!मातृभूमि,

एक दिन तुझे अपनाएगी।

कवि  की कल्पना सार्थक और साकार होगी  ही .

No comments: